गाडरवारा : यादों का एक शहर

अपने गांव अपने शहर से लगाव सभी को होता है और होना भी चाहिए, जिस जगह बच्चा पैदा होता है वहां की एक-एक चीज से उसकी यादें जुड़ी होती हैं। वह कभी भी विस्मृत नहीं की जा सकती हैं फिर चाहे वह पेड़ पौधे हों या सुबह-सुबह डालों पर अठखेलियां करते पंछियों की माधुर्य उत्पन्न करती चहचहाहट हो।
              उन पक्षियों के कारण भी शहर के साथ यादों का जुड़ा होना सहज बात है क्योंकि पक्षियों की वह स्थिति कहीं और देखने को और सुनने को नहीं मिलती वह बात अलग है कि पक्षी सारे जहां में हैं लेकिन अपने शहर के साथ का सामंजस्य उन पक्षियों का होना अपने शहर की ओर खींचने को लालायित करता है हमें इन सब बातों की अनुभूति उस शहर में रहते हुए तो नहीं होती क्योंकि हम उसकी गोद में हमेशा खेल रहे होते हैं तब तो हमें उससे बिछड़ने का बोध नहीं होता जैसे ही हम अपने गांव/ शहर से दूर जाते हैं तो हमें उसके महत्व उसकी गरिमा का अहसास होता है, और वह भी इतना प्रबल कि कभी-कभी तो मन करता है इस दूसरे शहर से भागकर अपने शहर पुनः चले जाएं।
   
             इसी तरह मेरे मन के तार भी गाडरवारा की मिट्टी के एक कण से जुड़े हुए हैं और वह इतने मजबूत हैं कि किसी और शहर की चकाचौंध उनको तोड़ नहीं सकती।
             अपना गांव/ शहर तो अपना होता है तब चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो जब हम उसके बारे में कुछ अच्छा कहे तो बड़ी प्रसन्नता होती है।
            यूं तो हर शहर शहर में राजनैतिक कीड़े मंडराते रहते हैं जिनमें से कई तो फिजूल के ही होते हैं हालांकि यदि राजनैतिक द्वंद से ऊपर उठकर हम अपने शहर को निहारे तो बहुत निर्मल बहुत पावन दिखाई देता है और राजनैतिक के ही क्यों?
        जितनी भी प्रकार की बुराइयां हैं उन सब से उठकर ही हमें अपने शहर की गरिमा का आभास हो सकता है। वह बात अलग है कि दुनिया जब किसी शहर को देखती है तो इन्हीं मानकों के आधार पर वह उसे पसंद या नापसंद करती है।
           लेकिन अपनी जन्मस्थली होने के नाते यदि किसी शहर को देखा जाए तो उस पर बहुत अपना बहुत लाड़ बहुत प्रेम स्वत: ही न्यौछावर होता है।

                   गाडरवारा में  जब कोई आता है तो स्टेशन ऐसी प्रतीत होती है मानो अपनी बाहें खोलकर स्वागत कर रही हो प्रथम दृश्य नेत्र पट्टालिका पर छोड़ जाता है।  गाडरवारा में खड़े होने के लिए कई सारे स्थान हैं लेकिन कुछ एक बहुत ही ज्यादा फेमस हैं और गाडरवारा में रहने वाले व्यक्ति ने जरूर कई कई घंटे यहां खड़े होकर गुजारे होंगे इसमें कोई दो राय नहीं है।
              कई दोस्तों के मिलने से यहां एक दूसरे का मनोमालिन्य दूर हुआ होगा तो कुछ बुजुर्ग या फिर कुछ बच्चे जरूर यहां सुबह या शाम के समय में झुंड बनाकर हंसी के गुब्बारे उड़ाते हुए मिल जाएंगे।


###अतिशयोक्ति नहीं होगी की पानी की टंकी की जगह हमेशा प्रसन्नता के रसातल में डूबी रहती है लगभग हर दिन ही पानी की टंकी के पास संध्या के समय आपको कोई ना कोई बर्थडे मनाते हुए मिल जाएगा और सच कहूं तो यह सिर्फ बर्थडे नहीं होता केक की होली होती है केक कटने के बाद खाना-खिलाना तो ठीक है लेकिन उसके बाद जो होली खेलती है वह अवसाद में डूबे हुए व्यक्ति को भी मंत्रमुग्ध कर सकती है,क्योंकि गाडरवारा वाले केक खिलाते कम है और केक को मुंह पर लगा देना ज्यादा पसंद करते  है और साहब उसका भी अपना ही मजा आता है; कोई अतिथि गाडरवारा आए और उच्छव महाराज के लौंग लता ना खाए तो उसे शायद गाडरवारा की स्वाद और खुशबू से कभी सरोकार ही ना हो पाएगा पानी की टंकी के थोड़े आगे ही उच्छव महाराज की दुकान है जिसमें उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी लौंग लता बनाने का काम कर रही है जिसके लौंग लता इतने स्वादिष्ट इतने लजीज होते हैं कि आपका बार-बार खाने को मन करेगा और आप कहीं भी चले जाओ लेकिन गाडरवारा के लौंग लतों की खुशबू को आप भुला नहीं पाएगें।।

            कॉलेज ग्राउंड यह सिर्फ एक नाम नहीं है यह एक तीर्थ स्थल है 2014 में यहां सवा करोड़ शिवलिंग निर्माण का महायज्ञ हुआ था जिसकी अगवानी परम पूज्य देव प्रभाकर शास्त्री दद्दा जी ने की थी जहां पर बड़ी-बड़ी हस्तियों ने पूर्ण आहुति दी थी लगभग सभी बड़े धार्मिक अनुष्ठान यहां होते रहे हैं उस समय इस कॉलेज ग्राउंड को कुछ लोगों द्वारा रूद्र मैदान के नाम से भी जाना जाने लगा था इसी ग्राउंड में सुबह शाम के समय क्षेत्र के युवा पुलिस की भर्ती की दौड़ निकालते हैं उसी ग्राउंड की देन है कि वह यहां मेहनत करते हैं और फिर प्रशासनिक सेवाओं की दौड़ परीक्षा में सफल होकर देश की सेवा करते हैं तथा गाडरवारा का नाम रोशन करते हैं जो कि निश्चित ही गाडरवारा के लिए गर्व का विषय होता है प्रतिवर्ष यहां क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन लोगों द्वारा किया जाता है जिसमें प्रदेश के साथ ही अन्य प्रांतों से भी क्रिकेटर मैच खेलने आते हैं।
               लोगों की भीड़ का एक और गढ़ है झंडा चौक; यूं तो यह गाडरवारा का हृदय स्थल भी कहलाता है क्योंकि यह शहर के मध्य में स्थित है अधिकतम बड़े व्यापारी और स्वर्ण आभूषणों की दुकान है यहां पर हैं।
              गाडरवारा का जिक्र हो और डमरू घाटी का जिक्र ना हो यह तो वही बात हो गई कि व्यक्ति के पूरे शरीर का वर्णन किया गया और उसके सिर का वर्णन न किया गया हो डमरू घाटी भी गाडरवारा का गौरव है 51 फीट की यह शिवलिंग आस्था का और श्रद्धा का केंद्र बिंदु है और शिवरात्रि पर यहां हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं।
         किसी अन्य शहर पढ़ने गए गाडरवारा के युवाओं का छोटे-छोटे त्योहारों पर गाडरवारा आ जाना यह उनकी यादों का अपनत्व का समर्पण का उदाहरण नहीं तो क्या है भले ही गाडरवारा एक छोटा शहर है लेकिन इतना भी छोटा नहीं कि यहां के लोगों की यादें इसमें ना सकें भले ही गाडरवारा में जीविकोपार्जन के अत्याधिक संसाधनों पर इतना भी इतनी तो अस्मिता की है कि यहां के लोगों को जो बाहर रह रहे हैं वह इसकी गरिमा इसके अपनत्व को याद करते हैं।
          टंकी के पास सुबह-सुबह चाय की चुस्कियां लेकर गप्पे मारना हो या बच्चों का कॉलेज ग्राउंड में शाम के वक्त मस्ती करना हो। सार्वजनिक श्री पुस्तकालय में किताबें पढ़ना हो या फिर उसके पीछे बने अखाड़े में पसीना बहाना हो यह सब जीवन की अमूल्य पलों में से एक होते हैं जो कि व्यक्ति की आंतरिक मन से जुड़े होते हैं


यह यादों के वही पृष्ठ है जिसे कोई इंसान बचपन से बुढ़ापे तक भरता है और कभी अकेलापन महसूस होने पर उन्हें पड़ता है लोगों की तो मजबूरियां होती है जिसके कारण ही कोई अपना शहर छोड़कर जाता है वरना कौन अपनी जन्मस्थली छोड़ कर जाना चाहेगा।

~अजीत मालवीया "ललित"®
malviyaajeet1433@gmail.com

Comments

  1. 2014 m nhi 2011 m hua tha sibling nirmad

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  2. Amazing.
    यादों के झरोखे को खोल के रख दिया

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  3. बस्तविकता को आपने साहित्य के समन्वय के साथ जिस तरीके से ह्रदय तल पर उकेरा है काफी सराहनीय है। हम दण्डवत हैं आपकी कलम के समक्ष।,,,,

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