यादें
अजीत मालवीया'ललित'
मेरी यादें जुड़ जाती हैं
जब-जब शीत ऋतु आती है|
उस समय पुरानी यादों के
अल्फाजों में खो जाता हूं ।
इन यादों को मैं,
बार-बार दोहराता हूं|
इन यादों की भी अजीब
दास्तां होती है।
जब-जब इन्हें याद मैं करता,
तब-तब मुझे रुलाती हैं|
वो पुरानी यादें नई यादों के,
जैसे ही बन जाती हैं,
कभी हंसाती कभी रुलाती
मेरे जीवन को चलाती हैं|
वो यादों का दरिया,
इकट्ठा होकर के,
एक समंदर सा बन जाता है,
ये जब भी याद सतातीं हैं|
वह समुद्र रूपी यादों ,
का डेरा, बूँद- बूँद,
मेरे जीवन की राहों में,
नित नए कुलाँचे भरता है|
मैं इस बात को,
सोच-सोच इतराता हूं,
मेरी यादों के झरोखे,
मेरी राहें आसान बनाते हैं|
कहीं बिखर न जाएं वो टुकडे
इसलिए में उन यादों के टुकडों को
एक-एक समेटकर उठाता हूं|
इस यादों रूपी खाई से,
जब भी बाहर आता हूं,
मैं बार-बार उस खाई में,
गिरने को आतुर होता हूं|
कितनी खट्टी कितनी मिट्ठी,
ये शीत की यादें होंती हैं|
बार-बार इन्हे चखने को,
मन फिसल -फिसल ही जाता है|
बडी लचीली बडी सुरीली,
ये शीत की यादें होती हैं,
इन्हे पाने के लिए,
मेरा मन व्याकुल सा हो जाता है|
जल्दी से दिन का निकलना,
सूरज का चंदा बन जाना,
चंदा का बन जाना तारा,
मेरे दिल को भाता है|
"ललित" रूपी इन यादों को,
याद तो हर कोई करता है,
पर कलम द्वारा कागज पर,
हर कोई नहीं इन्हे लिखता है|
मेरी यादें जुड जाती हैं,
जब-जब शीत ऋतु आती है|
Dedicated to my school friends.
अजीत मालवीया'ललित'
मेरी यादें जुड़ जाती हैं
जब-जब शीत ऋतु आती है|
उस समय पुरानी यादों के
अल्फाजों में खो जाता हूं ।
इन यादों को मैं,
बार-बार दोहराता हूं|
इन यादों की भी अजीब
दास्तां होती है।
जब-जब इन्हें याद मैं करता,
तब-तब मुझे रुलाती हैं|
वो पुरानी यादें नई यादों के,
जैसे ही बन जाती हैं,
कभी हंसाती कभी रुलाती
मेरे जीवन को चलाती हैं|
वो यादों का दरिया,
इकट्ठा होकर के,
एक समंदर सा बन जाता है,
ये जब भी याद सतातीं हैं|
वह समुद्र रूपी यादों ,
का डेरा, बूँद- बूँद,
मेरे जीवन की राहों में,
नित नए कुलाँचे भरता है|
मैं इस बात को,
सोच-सोच इतराता हूं,
मेरी यादों के झरोखे,
मेरी राहें आसान बनाते हैं|
कहीं बिखर न जाएं वो टुकडे
इसलिए में उन यादों के टुकडों को
एक-एक समेटकर उठाता हूं|
इस यादों रूपी खाई से,
जब भी बाहर आता हूं,
मैं बार-बार उस खाई में,
गिरने को आतुर होता हूं|
कितनी खट्टी कितनी मिट्ठी,
ये शीत की यादें होंती हैं|
बार-बार इन्हे चखने को,
मन फिसल -फिसल ही जाता है|
बडी लचीली बडी सुरीली,
ये शीत की यादें होती हैं,
इन्हे पाने के लिए,
मेरा मन व्याकुल सा हो जाता है|
जल्दी से दिन का निकलना,
सूरज का चंदा बन जाना,
चंदा का बन जाना तारा,
मेरे दिल को भाता है|
"ललित" रूपी इन यादों को,
याद तो हर कोई करता है,
पर कलम द्वारा कागज पर,
हर कोई नहीं इन्हे लिखता है|
मेरी यादें जुड जाती हैं,
जब-जब शीत ऋतु आती है|
Dedicated to my school friends.
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