मुकेश मीना/ mukesh meena

राजस्थान के जिला दौसा में 1 फरवरी 1979 को श्री मुकेश मीणा का जन्म हुआ संगीत में रुचि बचपन से ही थी; जब यह चौथी पांचवी कक्षा में थे तो स्कूल में जब 26 जनवरी व 15 अगस्त को कार्यक्रम हुआ करते थे तो यह उन में हिस्सा लिया करते थे।
          बचपन में ही इनके पिताजी का देहांत हो गया तब उनका लालन-पालन इनकी मां ने किया इनके दो भाई और हैं जिनमें बड़े भाई जॉब करते हैं और छोटे भाई अभी पढ़ाई कर रहे हैं इन तीनों को इनकी मां ने बड़ी मुश्किलों के बाद पाल पोस कर बड़ा किया, लेकिन कहते हैं ना जो भी होता है अच्छे के लिए होता है समय के साथ साथ चलते हुए मुकेश जी की बैंक में नौकरी लग गई और 2015 में यह मुंबई आ गए।

"हर काम सही समय पर शुरू होता है" ठीक ऐसा ही इनके साथ भी हुआ इनके संगीत की असल आग मुंबई में ही भड़की जब इनके स्कूल के दोस्त से इनकी मुलाकात मुंबई में हुई जो कि पहले से ही मुंबई में निवास करते थे ।

अक्सर इनकी धर्मपत्नी श्रीमती अनीता मीना व इनके मित्र के साथ संगीत के विषय पर वार्तालाप हुआ करता था; मुंबई आ कर वैसे भी लोगों का मन बॉलीवुड और संगीत आदि में गोता लगाने को वैसे ही आतुर हो जाता है ठीक ऐसा ही इनके साथ भी हुआ यह गाने का प्रयत्न घर पर किया करते थे और उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा स्रोत इनकी धर्मपत्नी ही रही।

       बातों ही बातों में मालूम चला कि इनके दोस्त भी संगीत में रुचि करते हैं पर समय की कमी के कारण वह भी  संगीत पर ध्यान नहीं दे पाए लेकिन "इनकी लग्न समय की कमी को लांघ करके संगीत की नदी में कूद जाने को कहती थी"  और वही हुआ इनके दोस्त ने फिर इतनी प्रतिभा को परख कर अपने दोस्त के द्वारा इन्हें एक पुराना हारमोनियम दिलवाया और मुकेश जी को तो मानो कारवां मिल गया उन्होंने पहले दिन से ही हारमोनियम बजाना शुरू कर दिया जो मन में आता था वह यह बजाते थे धीरे-धीरे इनकी पकड़ सुरों पर आने लगी और फिर इन्होंने अपने दोस्तों को यह बात बतलाई तो उन्होंने यह सुझाव दिया कि आप बहुत अच्छा बजाते हैं लेकिन अपनी प्रतिभा को थोड़ा निखार लीजिए थोड़ा सा सीख लीजिए तो आपकी कला में और ज्यादा वृद्धि हो जाएगी तब मुकेश जी ने एक मैडम कि यहां सीखने का प्रयत्न किया।

      तब इन हारमोनियम का बेसिक नॉलेज मिला जैसे राग, अलंकार और उनके पास समय कम होता था इनकी नौकरी के कारण फिर इन्होंने वहां से समय अभाव के कारण वहां पर जाना बंद कर दिया हालांकि इनका सुनने पर बहुत अच्छा फोकस रहता था इसलिए यह गानों की धुन निकाल लिया करते थे समय बीता और फिर इन्होंने संगीत की गहराई में जाने का प्रयास किया और अपने घर पर सिखाने के लिए एक शिक्षक महोदय को आमंत्रित किया और उनसे संगीत की बारीकियों का भली-भांति अध्ययन किया और फिर कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण शिक्षक महोदय भी इन्हें समय ना दे सके तब मुकेश जी भी संगीत तब तक मुकेश जी भी संगीत में निपुण हो चुके थे और अब उन्हें किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं होती थी।

           जब उनकी रूचि चरम पर पहुंच गई तो इन्हें इनकी धर्मपत्नी के द्वारा यूट्यूब के विषय में जानकारी ली और फिर यूट्यूब पर वीडियो डालने शुरु की थी अच्छा रिस्पांस मिला और यह हमेशा आगे बढ़ते गए और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा वर्तमान में इनके एक लाख से ज्यादा सब्सक्राइब हैं जो संगीत की शिक्षा ले रहे हैं जिनमें कि भारत के अलावा भी नेपाल कनाडा अमेरिका न्यू जीलैंड इत्यादि देशों में अप्रवासी भारतीय संगीत सीख रहे हैं।

इन्हे इनके मित्र पंकज यादव (फरीदाबाद) से हमेशा सहयोग मिला।

इनका लोगों के प्रति ममत्व इतना है कि इन्हे दिन भर में सैकडों फोन आते हैं, शाम काल में यह फोन पर सभी से बात करते हैं और बडे स्न्ह से संगीत की जानकारी दे देते हैं जब ये दिन में आफिस जाते हैं तो इनकी धर्मपत्नी पत्नि फोन का रिस्पांस देतीं है।

इस व्यस्त दुनिया में भी समाज की सेवा मुकेश जी जैसे लोग कर रहे हैं जो कि वाकई अद्भुत है।
यदि आप इन से संगीत सीखना चाहते हैं तो यू ट्यूब पर "Sur sangam". चैनल पर इनके वर्तमान में सात सौ से ऊपर वीडियो हैं वहां से सीख सकते हैं।

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