जा रहा हूं...
जा रहा हूं घर को छोड़कर,
आंगन को मायूस सा देखकर,
गलियारे की चिड़ियों को चहकता छोड़ कर।
मां की आंखों को नम सा छोड़कर,
बाबू जी की नजरों में बड़ा आदमी।
बन कर लौटने की चाह को संजोकर।
दोस्तों के जेहन में पक्की यारी,
निभाने का ख्वाब सा देकर,
घर परिवार की अटकलों को तोड़कर,
अभाव का सबब सा लेकर,
अपनत्व का हुनर सा ले कर।
कठिनाइयों को जड़ से खोदकर।
जा रहा हूं .........पढ़ने कॉलेज,
अपने घर की सारी यादों को समेट कर।।
अजीत मालवीया'ललित'
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