||••प्रत्येक आरंभ मिथ्या है......••||
जीवन की शुरुआत प्रकृति की सहज प्रक्रिया है या कुछ और लेकिन इंसान का जीवन ही समाप्त कर देती है हर एक शुरूआत।
जब तक मृत्यु का निनाद समीप नहीं आ जाती तब तक ऐसा ही प्रतीत होता है कि यह तो शुरुआत है। हर एक क्षण को जीवन में आरंभ माना जाता है, प्रत्येक क्षणों में इंसान का अपमान किया जाता है,कभी तो वह अचानक बड़ा हो जाता है तो कभी अचानक ही वह छोटा हो जाता है तो कभी अपने से छोटों के बीच में स्वयं को बड़ा अनुभव करता है तो कभी अपने से बड़ों के बीच में स्वयं को हेय दृष्टि से देखता है ।
वह जीवन भर अचंभित रहता है और स्वयं के अस्तित्व को समझ ही नहीं पाता है, कितने ही पल आए जब मनुष्य ने स्वयं को ऊंचे अहदे वाला महसूस किया कितने ही पल आये जब मनुष्य ने खुद के अस्तित्व को नकार दिया वह हमेशा से असमंजस में रहा कि वह बड़ा है या छोटा क्योंकि कई बार तो वह बड़ा हो गया और कई बार ही वह छोटा हुआ और ठीक से निर्णय भी नहीं ले पाया था कि उसकी जीवन संध्या निकट आ गई।
कई बार ही उसको ऐसा प्रतीत हुआ कि उसका बहुत महत्व है इस दुनिया के लिए तो दूसरे ही क्षण उसकी यह सोच किसी और ऊंचे दर्जे वाले व्यक्ति के समक्ष फीकी पड़ गई और वह निरुत्तर हो गया ।
कई बार ही उसने स्वयं को यह एहसास दिलाया कि मेरा महत्व को छोटे दर्जे के व्यक्तियों के समक्ष अधिक है और कई दफे उसको यह स्वीकार करना पड़ा कि उस उस से ऊंचे दर्जे के व्यक्तियों के समक्ष उसका अस्तित्व बहुत अधिक नहीं है और यह क्षण उसके लिए अत्यंत कष्टप्रद रहा लेकिन उसको यह मजबूरन सहन करना पड़ा ।
नौ महीने की पीड़ा को लांघकर जब शिशु गर्भ ग्रह से संसार में प्रविष्ट होता है तो वह सोचता है कि क्यों मुझे इस परेशानियों के जाल में फेंक दिया गया और रुदन के साथ ही वह अपनी उस पीड़ा को बयां करता है जो मुश्किलें आगे उसके जीवन में घटित होने वाली हैं ।
बहु थोड़े ही लोग गर्भ ग्रह को त्याग करके खिलखिला कर हंस पड़े हैं शायद इसलिए कि उनको स्वयं के अस्तित्व बोध पूर्व में ही हो चुका था।
हंसना रोना तो मनुष्य की सहज पर क्रियाएं हैं लेकिन सबसे ऊपर है स्वयं को इन दोनों प्रकृति प्रक्रियाओं से मुक्त कर देना।
बालक जब छोटा होता है तो कई बार ही उसको यह बोला जाता है कि तुम छोटे हो तुमसे फलां काम ना हो सकेगा और उसे यह हिदायत दी जाती है कि तुम यदि फलां काम करोगे तो तुम्हें नुकसान होगा और बालक के मन में एक अंदरूनी डर धीरे - धीरे घर करने लगता है।
बच्चे का दाखिला जब प्राथमिक स्कूल में कराया जाता है तो यह कई बार ही डराया जाता है कि यह काम नहीं करना वह काम नहीं करना।
जब वही बालक अब थोड़ा बड़ा हो जाता है तो हाई स्कूल में जाता है, ध्यान रखने योग्य बात यह है कि प्राथमिक स्कूल छोड़ते वक्त उस बच्चे को बोला गया था कि अब तुम बड़े हो गए हो लेकिन जैसे ही वह हाई स्कूल में आया तो फिर एक बार उसको कहा गया कि तुम अभी छोटे हो।
किंतु एक बात स्पष्ट है कि बालक कुछ तो बढ़ा हुआ है क्योंकि उसने प्राथमिक शिक्षा पूरी करके हाई स्कूल में दाखिला लिया है।
अब जैसे तैसे वह अपनी विद्यालय की पढ़ाई पूरी करता है तब तक फिर अंत में उसे कहा जाता है कि तुम अब बड़े हो गए हो परिपक्व हो गए हो तत्पश्चात वह कॉलेज में दाखिले के लिए जाता है तो वहां पर एक बार सीनियर के आगे जूनियर होने का एहसास होता है, एक बार फिर उसके मन में यह बात डाल दी जाती है कि तुम अभी नए हो अपने सीनियर से सर करके बात किया करो वह इंसान विस्मित भाव से खुद को निहारता है कि मैं तो अभी स्कूल से बड़ा होकर आया था और यहां कॉलेज में आते ही से छोटा हो गया ।
हालांकि वह इसी कशमकश में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके और एक बार फिर बड़ा बनकर निकलता है लेकिन उसके पौं बारह तब हो जाते हैं जबकि वह नौकरी मिलने के बाद एक बार पुनः सुनता है कि तुम अभी नए हो सीनियर कर्मचारियों से तुम्हें नीचे रहना होगा।
एक बालक की भी यही दुविधा थी वह घरवालों से बाइक चलाने मांगता तो घरवाले कहते बेटा तुम अभी छोटे हो और वही घर वाले दूसरे दिन कहते थोड़ा काम धंधा किया करो अब बड़े हो गए हो।
इसी तरह के असमंजस में इंसान की जिंदगी कब मौत में परिणित हो जाती है उसे एहसास ही नहीं होता दुनिया की नजरों में यही क्रमिक विकास है और सबके साथ ऐसा ही होता है और मेरी नजरों में सिवाय मूर्खता कुछ भी नहीं है।
जो व्यक्ति एक बार स्वयं को जानने में और सत्य से साक्षात् करने में अपना जीवन समर्पित करता है उसे बार-बार बड़ा छोटा नहीं होना पड़ता।
संसार की जितनी भी व्यवस्थाएं हैं उन व्यवस्थाओं के बल पर इंसान कभी स्वतंत्र होकर नहीं मर सका, बहुत थोड़े से लोग ऐसे पैदा हुए जो कि संसार की इन कुटिल नीतियों को नकारकर स्वतंत्र मर पाने में सक्षम हो पाए।
इसीलिए कहता हूं इस संसार के किसी भी आरंभ रूपी मिथ्या के भ्रम में खुद के जीवन को नष्ट ना करो और सत्य के प्रति प्यास को जगाओ।
~ अजीत मालवीया'ललित'
Email- malviyaajeet1433@gmail.com⇐♬
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