द्विअर्थीय शब्द
"सोना" शब्द सुनकर इंसान का मन चमकती हुई धातु की कल्पना करने लगता है, और जो आलसी होते हैं उनका मन बिस्तर की ओर भागने लगता है।
हिंदी भाषा के शब्दों का रहस्य बहुत ही अद्भुत है हमने धातु को भी सोना कहा है और निद्रा को भी सोना कहा है वास्तविक अर्थों में यह दोनों बातें सम्यक हैं क्योंकि सोना धातु एक महंगी वस्तु है जिसे खरीदने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है और वह भी बहुत ज्यादा।
सोना (नींद) भी एक तरह की बहुमूल्य वस्तु है जो कि बहुमूल्य है जो पैसै खर्च करने पर प्राप्त नहीं होती है, यह चित्त की सहायता से प्रेम और शांति के अनुभवों परिपूर्ण है।
"मुद्रा" शब्द को सुनकर अधिकतम दफा इंसान रुपयों की ओर ही आकर्षित होता है; दूसरा अर्थ ध्यान की मुद्राओं से जो वास्तविक अर्थ में पैसों से कहीं अधिक मूल्यवान है।
जिन मुद्राओं में ध्यान किया जाता है यह किया जाता है, योग किया जाता है। वह जीवन के कई रहस्यों से पर्दापण करते हैं और उनके अद्भुत प्रणाम परिपेक्ष में आते हैं इसके लिए हमने मुद्रा को दो अलग-अलग अर्थ हमें बहुत ही रहस्यमय ढंग से परिभाषित किया है।
"कल" यह सब तो दोनों अर्थों में अपनी पूर्ण भूमिका अदा करता हैं। हमने आने वाले दिन को भी 'कल' कहा है और जो निकल चुका है उसको भी 'कल' कहा है इसका एक बहुत ही अर्थपूर्ण रहस्य प्राप्त होता है। वह यह है कि इंसान आज यानी वर्तमान की वजह 'कल' ( या तो वो तो गुजरा हुआ हो या आने वाला हो) में ज्यादा विश्वास रखता है।
वह कल में जीने का आदि हो चुका है आज मैं उसे कोई आनंद मालूम नहीं होता है और यही दुखों का कारण भी है हमने कल को बड़ी चतुराई से इसका अर्थ निकाला है क्योंकि जो गुजर चुका है वह भी कल था वह भी अतीत था और जो आने वाला है वह भी कल बनकर गुजर जाएगा इंसान आज से ज्यादा कल में सहज होता है भले ही वह उसमें व्यथित रहे पर उससे अपना अतीत और भविष्य कल में ही नजर आता है।
✍️ अजीत मालवीया'ललित'
२०/०८/२०१८
मैं ओर कुछ समझा😁
ReplyDeleteक्या समझे?
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