गहन अनुरक्ति

 

         *गहन अनुरक्ति*




ब्रह्मांड के अनेंको तारामंडल में,
कहीं चमकता ध्रुव सा तुम हो!

बाजारों की इस भीड़ में,
दूर गाँव में नीम की सी छाया तुम हो!

हर पल फिसलन सी राहों में,
अड़िग काँधे सा सहारा तुम हो!

कर्ण भेदी क्रंदन में भी,
एकतारे सा बाजा तुम हो!

घनघोर घटा पर कलरव करते,
मस्त मगन से पपीहा तुम हो !

टूटे हुए मन के सागर में
प्रणय सेतु से  तुम   हो !  

जीवन के हर शुभ क्षण में,
पारिजात सा पौधा तुम हो!

इस अतरंगी से जीवन में,
सतरंगी से साथी तुम हो !

कंटकीर्ण के कानन में,        
नंदनवन के चंदन तुम हो!

भय से सरावोर जीवन में,
"अभय" से वरदान तुम हो!

मेरी इन यथार्थ भावनाओं में,            
कपोल कल्पित साधन तुम हो !    

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लेखक -  अजीत ललित
संपर्क -   malviyaajeet1433@gmail.com


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